ऑपरेटिंग सिस्टम (OS), एक प्रकार का सिस्टम सॉफ्टवेयर होता है, जिसे प्रोग्रामर के द्वारा किसी न किसी प्रोग्रामिंग भाषा का प्रयोग करके बनाया जाता है।
Operating System (OS) – ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है?
ऑपरेटिंग सिस्टम का अर्थ
यदि हम ऑपरेटिंग सिस्टम के अर्थ को समझें तो,
ऑपरेटिंग का मतलब – किसी चीज को ऑपरेट करना अथवा किसी चीज को चलाना
और सिस्टम का मतलब होता है – यंत्र / तंत्र
अर्थात किसी चीज को चलाने वाला तंत्र ही ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
चूंकि यहां कम्प्यूटर सिस्टम के संदर्भ में बात की जाती है तो यहां पर ऑपरेटिंग सिस्टम का अर्थ हुआ – कम्प्यूटर सिस्टम को चलाने व नियंत्रित करने वाला सिस्टम सॉफ्टवेयर ही ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) की परिभाषा –
Operating System वह सिस्टम सॉफ्टवेयर है, जो कम्प्यूटर सिस्टम के सभी हार्डवेयर जैसे कि CPU, memory, input व output device आदि तथा कम्प्यूटर में इंस्टॉल हुए सभी एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के कार्यों को संचालित, नियंत्रित व व्यवस्थित (operate, control व manage) करता है और यूजर व कम्प्यूटर-हार्डवेयर के बीच मध्यस्थ (interface) का कार्य करता है अर्थात यूजर व कम्प्यूटर हार्डवेयर के मध्य कम्युनिकेशन स्थापित करके, उपयोगकर्ता को इन हार्डवेयर को उपयोग करने की सुविधा प्रदान करता है, इसके साथ ही एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को रन व उपयोग करने के लिए एक वातावरण उपलब्ध करवाता है।
अथवा
ऑपरेटिंग सिस्टम कई प्रोग्रामों का समूह होता है जो कम्प्यूटर हार्डवेयर और कम्प्यूटर उपयोगकर्ता के बीच मध्यस्थ (इंटरफ़ेस) का कार्य करता है एवं एप्लीकेशन प्रोग्राम को एग्जीक्यूट व उपयोग करने के लिए वातावरण प्रदान करता है।
यह कम्प्यूटर के सभी हार्डवेयर और इंस्टॉल्ड एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के कार्यों को ऑपरेट, मैंनेज व कंट्रोल करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना कम्प्यूटर सिस्टम का कोई भी अस्तित्व नहीं है।
कम्प्यूटर को ऑन करने पर ऑपरेटिंग सिस्टम ही सबसे पहले कम्प्यूटर की secondary memory से main memory (RAM) में लोड होता है।
कम्प्यूटर सिस्टम के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम ही सबसे महत्वपूर्ण प्रोग्राम/सॉफ्टवेयर है जिसके बिना कम्प्यूटर द्वारा किसी भी प्रकार का ऑपरेशन परफॉर्म नहीं किया जा सकता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम – हार्डवेयर, एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर तथा यूजर के मध्य interface (मध्यस्थ) का कार्य करता है।
Computer के मुख्य हार्डवेयर = CPU, Memory, Input तथा Output devices हैं, ये computer के मुख्य संसाधन कहलाते हैं।
तथा Application program अथवा software = Word Processing, DBMS, Excel, PowerPoint, Gaming S/W, Business S/W आदि।
Computer के users – Human, Machine तथा अन्य computers
Examples Of OS – Microsoft Windows, Mac Operating System, Linux, UNIX, DOS और Mobile Devices के लिए – Android एवं iOS (Apple).
Functions of Operating System – ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य
1. Operating System (OS) – computer user और computer hardware के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है।
Computer Users – कोई भी व्यक्ति अथवा मशीन, जो कम्प्यूटर का उपयोग कर रहे होते हैं।
Computer Hardware – CPU, Memory, I/O devices आदि।
OS, कम्प्यूटर उपयोगकर्ता को इन hardware को उपयोग करने की सुविधा उपलब्ध कराता है।
2. Operating System – application software और computer hardware के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है।
यह, उपयोगकर्ता के जरूरत के अनुसार, application program को उचित hardware (printer, scanner, fax machine, CPU, memory आदि) एलोकेट करता है, तथा इन hardware resources को उपयोग करने की अनुमति देता है।
अर्थात ऑपरेटिंग सिस्टम, एप्लीकेशन प्रोग्राम के जरिए यूजर को हार्डवेयर उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है।
3. Operating System, यूजर व एप्लीकेशन प्रोग्राम के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है।
अर्थात ऑपरेटिंग सिस्टम, यूजर को कंप्यूटर में एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल व एग्जीक्यूट करके उपयोग करने की अनुमति देता है। डेस्कटॉप पर बने icons या start menu के द्वारा ही तो हम, एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को एक्सेस कर सकते हैं और एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करने के लिए, सेकेंडरी मेमोरी (HDD/SSD) में स्पेस का एलोकेशन, ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा ही किया जाता है एवं जब यूजर किसी एप्लीकेशन प्रोग्राम को उपयोग करना चाहता है तो उस एप्लीकेशन प्रोग्राम को RAM में भी लोड करने का कार्य भी ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा ही किया जाता है।
4. ऑपरेटिंग सिस्टम, हार्डवेयर प्रबंधक (resource manager) की तरह कार्य करता है – अर्थात कंप्यूटर सिस्टम के सभी हार्डवेयर का, बड़ी ही दक्षता व कुशलता के साथ संचालन, नियंत्रण व प्रबंधन करता है। और सभी हार्डवेयर रिसोर्सेस का best एवं ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम, वह सिस्टम सॉफ्टवेयर है, जो कंप्यूटर सिस्टम के सभी हार्डवेयर जैसे कि – CPU, Memory, I/O devices आदि तथा कंप्यूटर में इंस्टॉल्ड सभी एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के मध्य निश्चित तालमेल बनाकर, इनके कार्यों को संचालित (operate), व्यवस्थित (manage) व नियंत्रित (control) करता है।
और यूजर व कंप्यूटर-हार्डवेयर के बीच मध्यस्थ (interface) का कार्य करता है, इसके साथ ही उपयोगकर्ता को कंप्यूटर में application software को रन व उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है, तथा उपयोगकर्ता की आवश्यकता के आधार पर एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को निश्चित हार्डवेयर भी एलोकेट कर, उपयोग करने के लिए परमिशन देता है, जैसे सभी एप्लीकेशन प्रोग्राम को प्रिंट करने के लिए प्रिंटर की सेवा उपलब्ध करवाना।
सामान्यतः ऑपरेटिंग सिस्टम को हार्ड डिस्क के C ड्राइव में इंस्टॉल किया जाता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम, कंप्यूटर का सबसे महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर है इसके बिना कंप्यूटर का कोई अस्तित्व नहीं है, यह एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है, सिस्टम सॉफ्टवेयर का मतलब जो सिस्टम को चलाएं, operate, control व manage करे। यही कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम, हमारे कंप्यूटर सिस्टम के लिए करता है अतः ऑपरेटिंग सिस्टम एक मुख्य सॉफ्टवेयर है।
Key Functions of OS
1. Process Management
प्रोसेस मैनेजमेंट के अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम निम्न कार्य करता है –
प्रक्रिया (process) को आरंभ करना, उसे आवश्यक संसाधन (सीपीयू-टाइम, मेमोरी, इनपुट/आउटपुट आदि) उपलब्ध कराना, आवश्यक इनपुट डेटा प्रदान करना, इसकी शेड्यूलिंग करना, दो प्रोसेस के मध्य तालमेल बनाना, विभिन्न processes के मध्य संचार स्थापित करना, deadlock को हैंडल करना तथा प्रोसेस को समाप्त करके, दिए गए संसाधनों को वापस प्राप्त करना आदि कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रोसेस मैनेजमेंट के अंदर किए जाते हैं।
प्रोसेस (प्रक्रिया) की परिभाषा –
जब कोई प्राग्राम working mode में होता है तो वह प्रोसेस कहलाता है। अर्थात जब किसी प्रोग्राम का क्रियान्वयन (execution) हो रहा है वह प्रोसेस कहलाता है!
प्रोसेस एक सक्रिय अवस्था है जो RAM में होती है।
वर्तमान में जो प्रोग्राम अभी चल रहा है वह, प्रोसेस कहलाता है।
2. Memory management
मेमोरी का मैनेजमेंट भी ऑपरेटिंग सिस्टम का एक मुख्य कार्य है। इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम, प्रत्येक प्रोसेस के लिए मेमोरी में स्पेस allocate व de-allocate करता है और यह निर्धारित करता है कि memory के कौन से ब्लॉक को, किस प्रोसेस को प्रदान करना है, साथ ही यह रिकॉर्ड भी मेंटेन रखना कि, मेमोरी का कौन सा ब्लॉक किस प्रोसेस द्वारा उपयोग किया जा रहा है।
3. Secondary Storage management
वर्तमान समय में HDD (हार्ड डिस्क ड्राइव) तथा SSD (सॉलिड स्टेट ड्राइव) का प्रयोग, सेकेंडरी स्टोरेज डिवाइस के रूप में किया जा रहा है। ये कम्प्यूटर की स्थाई मेमोरी होती हैं, जिसमें सभी प्रकार के सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किए जाते हैं अत: सेकेंडरी स्टोरेज मैनेजमेंट, ऑपरेटिंग सिस्टम का एक मुख्य कार्य है। इसके अंतर्गत –
- सेकेंडरी मेमोरी में free space का प्रबंधन करना।
- मेमोरी में space का एलोकेशन एवं डि-एलोकेशन करना।
- तथा शेड्यूलिंग करना।
इसके अलावा –
Disk formatting, Disk Compression, Disk cloning, Disk defragmentation, Virtual memory creation, swap space management आदि की सुविधा प्रदान की जाती है।
Virtual memory – सेकेंड्री मेमोरी को main memory की तरह उपयोग करना।
4. File management
डेटा और जानकारी का लॉजिकल कलेक्शन, फाइल कहलाता है। अर्थात
डेटा और जानकारी का समूह, जोकि, एक इकाई के रूप में ट्रीट किया जाता है कम्प्यूटर में फाइल कहलाता है।
Meaning of File – एक संगठित सेट या रिकॉर्ड, जिसमें डेटा व इनफॉरमेशन को स्टोर किया जाता है।
कम्प्यूटर में डेटा के समूह को फाइल के रूप में संग्रहित किया जाता है। एवं files, फोल्डर या डायरेक्ट्रीज के अंदर होती हैं। और इन फाइल्स व फोल्डर को विभिन्न सेकेंडरी स्टोरेज डिवाइस में स्टोर किया जाता है।
अत: फाइल, मेमोरी में एक स्पेस है जिसमें डेटा व इनफॉरमेशन को, एक संगठित रूप से रखा जाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर को, इस स्पेस अथवा फाइल के साथ – open, cut, copy, paste, save, save as, rename, Back-up and recovery आदि करने के लिए ऑप्शंस उपलब्ध कराता है।
फाइल मैनेजमेंट के अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम निम्न कार्य करता है –
- नई files को बनाना व अनावश्यक फाइल को डिलीट करना
- नए folders व directories को बनाना व डिलीट करना
- ऑपरेटिंग सिस्टम, users के लिए उन कमांड्स को उपलब्ध कराता है जिनका उपयोग करके, यूजर files व folders में कई तरह के संशोधन अर्थात ऑपरेशन परफॉर्म कर सकता है। जैसे – फाइल को नाम देना, नाम परिवर्तन करना, cut, copy, paste, delete करना, save करना, files व folders को खोने व खराब होने से बचने के लिए बैकअप एवं रिकवरी की सुविधा प्रदान करना।
बैकअप एवं रिकवरी – किसी अन्य स्टोरेज डिवाइस जैसे कि – external HDD, SSD, CD, DVD आदि में बैकअप के रूप में संग्रहित कर लेना व जरूरत होने पर दोबारा उन फाइल्स व फोल्डर्स को प्राप्त कर लेना अर्थात रिकवर कर लेना। इसके लिए ऑपरेटिंग सिस्टम बैकअप एवं रिकवरी की सुविधा प्रदान करता है।
- सेकेंडरी स्टोरेज डिवाइस में संग्रहित files का रिकॉर्ड रखना।
- एक से अधिक यूजर को files को एक्सेस करने के लिए rights (अधिकार) प्रदान करना, मतलब कौन-कौन से यूजर्स, फाइल के साथ किस-किस प्रकार के ऑपरेशन परफॉर्म कर सकते हैं जैसे – read, write, append —- आदि।
5. Security and Protection
ऑपरेटिंग सिस्टम हमारे कम्प्यूटर के लिए कई प्रकार की सिक्योरिटी (सुरक्षा) प्रदान करता है। जैसे –
- Files एवं folder के खोने से बचाने के लिए बैकअप और रिकवरी की सुविधा।
- कम्प्यूटर को वायरस, वार्म आदि malicious प्रोग्राम से बचाने के लिए एंटीवायरस-सॉफ्टवेयर की सुविधा प्रदान करना अर्थात ऑपरेटिंग सिस्टम virus detection and prevention की सुविधा प्रदान करता है
- हमारे कम्प्यूटर की मेमोरी में उपलब्ध data, informations, files, folders directories, drives यहॉं तक कि computer को भी पासवर्ड से इंक्रिप्ट अथवा प्रोटेक्ट करने की सुविधा प्रदान करता है ताकि अनाधिकृत यूजर्स इन चीजों तक एक्सेस ना प्राप्त कर सकें।
6. Input / Output management अथवा device management
कम्प्यूटर सिस्टम के लिए इनपुट – आउटपुट डिवाइसेस जैसे कि – keyboard, mouse, touch screen, scanner, printer, monitor आदि बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण हैं, क्योंकि इनके बिना कम्प्यूटर को ऑपरेट ही नहीं किया जा सकता है। इनपुट-आउटपुट मैनेजमेंट के अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम प्रत्येक इनपुट-आउटपुट डिवाइसेस से संचार स्थापित कर, उन्हें कार्य पूरा करने के लिए command प्रदान करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा इनका नियंत्रण एवं निरीक्षण किया जाता है। साथ ही ऑपरेटिंग सिस्टम इन इनपुट-आउटपुट डिवाइस के आंतरिक कार्य की प्रक्रिया को, यूजर को छुपाते हुए, इनका उपयोग करने के लिए एक सरल इंटरफेस प्रदान करता है।
इसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा किए जाते हैं –
- उपयोगकर्ता को आसान इंटरफेस प्रदान करना।
- Buffering, caching तथा spooling आदि प्रक्रिया को करना।
- जरूरत के आधार पर डिवाइस-ड्राइवर सॉफ्टवेयर को रन करना ताकि ये devices, कम्प्यूटर सिस्टम के कंपैटिबल हो सकें और ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा ऑपरेट की जा सकें।
- इनपुट डिवाइस से कमांड लेकर, प्रोसेसर व आउटपुट डिवाइस से कार्य करवाना और यूजर को आउटपुट/ रिजल्ट प्रदान करना।
- इनपुट/आउटपुट उपकरणों का नियंत्रण व प्रबंधन करना।
7. User Interface
DOS में उपलब्ध होने वाला इन्टरफेस अर्थात कमांड प्रॉम्ट – DOS Prompt (C:\) कहलाता है। एवं यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम में मिलने वाला कमांड प्रॉम्ट – Dot Prompt (.) कहलाता है।
जबकि Windows, Android व iOS, macOS आदि, ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) प्रदान करते हैं।
DOS व Unix, कमांड लाइन इंटरफेस (CLI) अर्थात टेक्स्ट पर आधारित इंटरफेस (CUI = Character User Interface) प्रदान करते हैं। जबकि लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम कमांड लाइन इंटरफेस (CLI) व ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) दोनों प्रदान करता है। यूजर अपनी सुविधा व जरूरत के आधार पर एक इंटरफेस से दूसरे इंटरफेस में स्विच कर सकता है।
इसी तरह विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम भी GUI प्रदान करता है, पर यदि हम चाहे तो विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में भी DOS एनवायरमेंट में जाकर, टेक्स्ट मोड अर्थात कमांड लाइन इंटरफेस का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए task bar में बनें search box में Command Prompt type करके enter करना होगा, और Command Prompt खुल जाएगा।
ऑपरेटिंग सिस्टम के अन्य कार्य –
- Communication management
ऑपरेटिंग सिस्टम, users एवं computers के मध्य संचार स्थापित करता हैै। एवं नेटवर्किंग के माध्यम से विभिन्न computers के मध्य भी आपस में संचार/ संवाद करने में सक्षम बनाता है। तथा resources को भी आपस में शेयर करने के लिए allow करता है।
- Error Detection and Handling
यूजर द्वारा बनाए गए प्रोग्राम में आने वाली त्रुटियॉं, इनपुट किए गए डेटा का गलत होना, मेंन मेमोरी RAM में त्रुटि आना, मॉनिटर का सीपीयू से कनेक्ट ना होना, पावर फेल होना, इनपुट-आउटपुट उपकरण का कनेक्शन कंप्यूटर के साथ ना होना या इनमें खराबी आना, नेटवर्क कनेक्शन का फेल होना, प्रिंटर के कनेक्ट या ऑन न होने पर किसी डॉक्यूमेंट को प्रिंट कर देना, या प्रिंट करते समय प्रिन्टर में पेज लोड ना करना, सेकेंडरी मेमोरी का full हो जाना आदि प्रकार की त्रुटि आने पर ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा उचित कार्यवाही की जाती है ताकि कंप्यूटर सही तरीके से अपना कार्य करता रहे एवं दूसरे प्रोग्राम प्रभावित ना हों।
कंप्यूटर में किसी भी प्रकार की त्रुटि आने पर पर, ऑपरेटिंग सिस्टम या तो अपने लेवल पर उसे ठीक करने का प्रयास करता है, या फिर यूजर्स को इस संबंध में जानकारी प्रदान करता है।
- User friendly and efficient
ऑपरेटिंग सिस्टम, यूजर को उसकी जरूरत के अनुसार कंप्यूटर में विभिन्न प्रकार के software को install व विभिन्न प्रकार के hardware devices को connect करने की परमिशन प्रदान करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम, एक प्रकार का ऐसा सिस्टम सॉफ्टवेयर है जो कम्प्यूटर के इंटरनल ऑपरेशन को कंट्रोल करता है, और कम्प्यूटर, कैसे अपने सभी पार्ट्स एवं इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस आदि के साथ काम करता है उसका नियंत्रण व प्रबंधन करता है। |
ऑपरेटिंग सिस्टम, एक सिस्टम सॉफ्टवेयर होता है, जो कंप्यूटर हार्डवेयर और कंप्यूटर यूजर के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है। यूजर के लिए इंटरफेस (कार्य वातावरण) प्रदान करता है तथा यूजर की आवश्यकता के आधार पर, कंप्यूटर में एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल और एग्जीक्यूट करके, उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है, साथ ही यह एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को hardware resources जैसे कि – प्रिंटर, स्कैनर, मेमोरी, सीपीयू आदि भी प्रदान करता है। यूजर इंटरफेस (User Interface) – कंप्यूटर पर कार्य करने के लिए एक प्लेटफार्म या वातावरण। जैसे कि जब हम windows ऑपरेटिंग सिस्टम, अपने कंप्यूटर में उपयोग करते हैं, तो कंप्यूटर ऑन करते ही हमें एक डेस्कटॉप स्क्रीन दिखाई देती है इसी को इंटरफेस (कार्य वातावरण) कहते हैं, जिसमें छोटे-छोटे आइकॉन, टास्कबार, स्टार्ट मेनू, आकर्षक डेस्कटॉप आदि मिलता है। यह विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम का GUI (ग्राफिकल यूजर इंटरफेस) है। इसी तरह DOS (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम) में text आधारित DOS prompt, यूजर इंटरफेस के रूप में मिलता है। |
Interface – इन्टरफेस
Computer या Operating system का इन्टरफेस (Interface) क्या है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि कंप्यूटर हमारी भाषा चाहे, वह हिंदी हो या इंग्लिश या कोई अन्य भाषा नहीं समझता, वह तो केवल मशीन लैंग्वेज अर्थात बाइनरी भाषा (0 व 1) ही समझता है,
और यूजर को, कंप्यूटर से तो अपना कार्य करवाना है, इसके लिए ऑपरेटिंग सिस्टम हमें कंप्यूटर हार्डवेयर से interact करने के लिए ट्रांसलेटर प्रदान करता है जिसे कमाण्ड इंटरप्रेटर कहते हैं, जो कि ह्यूमन लैंग्वेज को कंप्यूटर की लैंग्वेज – बाइनरी भाषा में ट्रांसलेट कर देता है।
ये जो सारी प्रक्रियाएं हैं, जो कुछ भी होता है, ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर से छुपा लेता है, और एक ऐसा आसान इंटरफेस अर्थात कार्य वातावरण प्रदान करता है कि यूजर बड़ी ही आसानी से कंप्यूटर सिस्टम और उसके हार्डवेयर से संवाद (communicate) कर सके और अपना काम करवा सके।
इंटरफेस की परिभाषा –
ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक ऐसा कार्य वातावरण अथवा एक ऐसा माध्यम अथवा एक ऐसी स्क्रीन, जिसके जरिए यूजर कंप्यूटर पर अपना कार्य कर सके, और जिसके माध्यम से कंप्यूटर व इसमें इन्स्टॉल हुए साफ्टवेयर व इससे जुड़े सभी हार्डवेयर डिवाइस से कार्य करवाने के लिए command (आदेश) दे सके, इंटरफेस कहलाता है।
जैसे यदि हम विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की बात करें, तो इस ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कंप्यूटर को ऑन करते ही जो सबसे पहले स्क्रीन दिखाई देती है वह डेस्कटॉप स्क्रीन कहलाती है और यही विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम का इंटरफेस होता है जो की पूर्णत: GUI (ग्राफिकल यूजर इंटरफेस) होता है, जिसमें कई छोटे-छोटे icons, taskbar, start menu आदि होते हैं जो कि सभी ग्राफिक्स (चित्र) के रूप में होते हैं जिन्हें यूजर, माउस पॉइंटर की मदद से drag & drop कर सकता है।
आइकॉन को डबल-क्लिक करके, प्रोग्राम को ओपन कर सकता है, व टास्कबार में बने आइकॉन में सिंगल-क्लिक करके उन प्रोग्राम्स को ओपन कर सकता है। स्टार्ट मेनू की बटन को क्लिक करने से कंप्यूटर में इंस्टॉल सभी सॉफ्टवेयर / प्रोग्राम की लिस्ट को देख सकता है और उन्हें ओपन कर सकता है।
तो इस तरह हम देखते हैं कि विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रदान किया जाने वाला इंटरफेस पूर्णत: graphics पर आधारित GUI है। और यह इंटरफेस, यूजर्स को कंप्यूटर के सभी सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर के साथ interact करने की सुविधा प्रदान करता है।
इंटरफेस के प्रकार –
इंटरफेस निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –
1. कमांड लाइन इंटरफेस (Command Line Interface – CLI)
इस तरह के इंटरफेस में एक खाली स्क्रीन दिखाई देती है, जिसे command prompt कहते हैं। कंप्यूटर से अपना कोई कार्य करवाने के लिए या कोई जानकारी प्राप्त करने के लिए, हमें pre-defined स्ट्रक्चर के साथ इसमें command टाइप करके, क्रियान्वित करना पड़ता है।
चूँकि यह इंटरफेस, line by line कमांड क्रियान्वन पर आधारित होता है इसी कारण इस इंटरफेस को कमांड लाइन इंटरफेस कहते हैं।
उदाहरण – DOS, UNIX
DOS में, यूजर को मिलने वाला interface या command prompt – डॉस प्राम्प्ट कहलाता है। जबकि UNIX के कमांड प्रॉन्प्ट या इंटरफेस को डॉट प्राम्प्ट (.) कहते हैं।
2. बैच इंटरफेस (Batch Interface)
इस प्रकार के इंटरफेस में जिन commands को चलाना होता है उनको एक निश्चित क्रम में टाइप करके, एक फाइल में संग्रहित कर दिया जाता है, इस फाइल को बैच फाइल कहते हैं तथा फिर इस बैच फाइल को एग्जीक्यूट किया जाता है।
3. ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (Graphical User Interface – GUI)
वर्तमान समय में सबसे ज्यादा प्रचलित व आसान इंटरफेस है, जिसमें कंप्यूटर की सारी सुविधाऍं चित्र (ग्राफिक्स) के माध्यम से स्क्रीन पर दिखाई देती हैं जिन्हें किसी भी pointing devices जैसे की माउस का उपयोग करके उपयोग किया जा सकता है। GUI में ग्रॉफिक्स के रूप में icons, menu, start button, taskbar, dialog box, windows, desktop screen आदि प्राप्त होते हैं। इसमें किसी भी तरह के कमांड्स टाइप करने की जरूरत नहीं होती है।
उदाहरण – Windows OS, Linux, Android, macOS, iOS.
Linux OS दोनों प्रकार के इन्टरफेस CLI और GUI प्रदान करता है।
इसी प्रकार Windows OS, GUI के साथ ही, text पर आधारित CLI (Command Line Interface) में कार्य करने के लिए Command Prompt उपलब्ध कराता है।यूजर task bar में बनें search box में command prompt टाइप करके Command Line Interface में कार्य कर सकता है।
Type of OS – ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार
ऑपरेटिंग सिस्टम एक सिस्टम प्रोग्राम होता है, जो कंप्यूटर हार्डवेयर व यूजर के मध्य एक माध्यम की तरह कार्य करता है तथा यह एक ऐसा कार्य वातावरण (इंटरफेस) प्रदान करता है जिसके द्वारा user, कंप्यूटर पर कार्य कर सके, व एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर का सुविधाजनक व सरल तरीके से क्रियान्वयन व उपयोग कर सके।
समय के साथ कई प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित किए गए –
इसलिए ऑपरेटिंग सिस्टम को हम कई गुणों के आधार पर विभाजित कर सकते हैं –
- यूजर एवं उसके कार्य के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार
- काम करने के mode के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार अथवा इंटरफेस के आधार पर
- Function/ गुण / क्षमता के आधार पर OS के प्रकार
यूजर एवं उसके कार्य के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार –
- Single User OS
- Multi User OS
Single User OS – एकल उपयोगकर्ता ऑपरेटिंग सिस्टम
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि, यह एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसकी सुविधाओं का लाभ एक समय में, केवल एक ही यूजर द्वारा लिया जा सकता है, अर्थात इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कंप्यूटर को, एक समय में केवल एक ही यूजर एक्सेस करके इस्तेमाल कर सकता है, सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
अब सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम को task (कार्य) के आधार पर दो भागों में बांटा गया है –
- Single User Single-tasking OS
- Single User Multi-tasking OS
-
Single User Single-tasking OS
ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम, जिसमें एक समय में, केवल एक ही यूजर, एक ही कार्य कर सकता है, सिंगल यूजर सिंगल-टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
जैसे कि यदि हम किसी फाइल में लिख रहे हैं, तो उसी समय हम गाने नहीं सुन सकते हैं। या किसी अन्य प्रोग्राम पर कार्य नही कर सकते हैं। अथवा कोई अन्य ऑपरेशन परफार्म नही कर सकते हैं।
उदारहण = MS-DOS (Microsoft Disk Operating System)
-
Single User Multi-tasking OS
ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम, जिसमें एक समय में, केवल एक ही यूजर, एक से अधिक कार्य कर सकता है, सिंगल यूजर मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
जैसे कि यदि यूजर, किसी फाइल को पढ़ रहा है तो उसी समय अन्य files को भी open कर सकता है, गाने भी सुन सकता है साथ ही किसी अन्य एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर पर भी काम कर सकता है।
उदाहरण – Windows OS, Linux, macOS, Android, iOS.
Multi User OS अथवा Multi User-multitasking OS
इसके नाम से ही पता चलता है कि यह OS एक साथ ही multiple users व multiple tasks को support करता है। अर्थात यह ऐसा OS होता है, जिसकी सुविधाओं का लाभ एक से अधिक users एक ही साथ ले सकते हैं। सामान्यत: यह ऑपरेटिंग सिस्टम server computer पर install किया जाता है, और networking को support करता है।
इस server computer से अनेक client computer जुड़ सकते हैं, और सर्वर कम्प्यूटर की सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं।
जब एक या एक से अधिक client computer द्वारा, एक साथ ही, विभिन्न प्रकार के कार्य को करवाने के लिए server computer से अनुरोध किया जाता है, तो server, इनके अनुरोध को स्वीकार करता है और कुशलता पूर्वक प्रत्येक client computers द्वारा मॉंगी गई जानकारी को प्रदान करता है। या उनके द्वारा अनुरोध किये गये कार्य को पूरा करता है।
उदाहरण – UNIX server, Linux server, Windows NT Server, Windows Server 2016/2019 आदि।
काम करने के mode के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार अथवा इंटरफेस (कार्य वातावरण) के आधार पर –
- Command Line Interface (CLI) OS
- Graphical user interface (GUI) OS
Command Line Interface (CLI) अथवा Character User Inter (CUI) OS –
जब कंप्यूटर को उपयोग करते समय, user, कैरेक्टर के माध्यम से या command टाइप करके कंप्यूटर को आदेश देता है और सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है तो उसे कैरेक्टर यूजर इंटरफेस (CUI) अथवा CLI कहते हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम के इस मोड को कंसोल मोड भी कहते हैं।
उदाहरण – DOS एवं Linux व UNIX के कई संस्करण।
Graphical user interface (GUI) OS
जब यूजर, कंप्यूटर को ग्राफिक्स (चित्रों) के माध्यम से आदेश देता है और सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है GUI कहलाता है।
उदाहरण – Windows OS, macOS, android, iOS इसके अलावा Linux एवं UNIX के कई संस्करण GUI भी उपलब्ध कराते हैं।
जैसे –
- Linux-Ubuntu wih the GNOME desktop एवं Fedora Linux with KDE.
- Chrome OS – गूगल द्वारा बनाया गया, chrome-book के लिए।
Note –
- UNIX, Linux, Windows OS, तीनों प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम, GUI और CLI दोनों तरह के एनवायरमेंट (इंटरफेस) प्रदान करते हैं, यूजर अपनी सुविधा के अनुसार इन दोनों तरह के interface में स्विच कर सकता है।
- लेकिन DOS (MS – DOS), पूरी तह से CLI प्रदान करता है, यह GUI की सुविधा नही देता है।
Function/ गुण / क्षमता के आधार पर OS के प्रकार –
- Batch Processing OS
- Multi-Programming OS
- Multi-Tasking OS
- Multi- Processing OS
- Real-Time OS
- Network OS
- Distributed OS
Batch Processing OS
बैच ऑपरेटिंग सिस्टम में, काम बैच (समूह) में परफॉर्म किया जाता है। जिन भी प्रोग्राम्स (जॉब या टास्क) को एग्जीक्यूट करवाना होता है, उन सभी को, प्रत्येक यूजर द्वारा, ऑफलाइन तैयार कर लिया जाता है, प्रत्येक जॉब के लिए जो भी ऑपरेशन परफॉर्म करवाना है उनसे संबंधित सभी इंस्ट्रक्शंस या कमांड को, एक बैच फाइल बनाकर एक क्रम से स्टोर कर लिया जाता है।
जब प्रोग्राम (जॉब या टास्क) का एक बैच (समूह) तैयार हो जाता है, तो उसे कंप्यूटर सिस्टम में प्रोसेसिंग के लिए भेज दिया जाता है। कंप्यूटर सिस्टम में यह सारे प्रोग्राम एक क्रम से, बिना यूजर हस्तक्षेप के, क्रियान्वित हो जाते हैं, और यूजर को प्रिंट के रूप में आउटपुट प्राप्त हो जाता है।
बैच प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग वहां किया जाता है जहां सिमिलर टास्क, बड़ी मात्रा में परफॉर्म करवाना होता है।
जैसे – पेरोल (Payroll) बनाने, billing करने, customer से सम्बन्धित जानकारी बनाने, inventory management, बड़ी मात्रा में financial transaction जैसे – Credit card transaction and Banking operation आदि।
बैच ऑपरेटिंग सिस्टम का लाभ यह है कि, यह बड़ी मात्रा में repetitive task (similar task) को, बड़ी ही कुशलता से, automatically, बिना user हस्तक्षेप के, रियल टाइम में, एक क्रम से, समूह में पूरा कर देता है।
बैच प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम को निम्न नामों से भी जाना जाता है –
- Serial Processing OS अथवा Sequential Processing OS
- Stacked Job Processing OS
- Off line OS
Batch Processing में एक software का उपयोग किया जाता है, जिसे Monitor (मॉनिटर) कहते हैं।
Multi-Programming OS
Multi- Programming OS, एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम, जिसमें एक single CPU द्वारा, कई programs का execution साथ-साथ (concurrently) किया जाता है, एक program से दूसरे program में switch करके, मल्टी-प्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
इसमें दो या दो से अधिक programs (jobs/processes) को मुख्य मेमोरी RAM में लोड कर, उन्हें एक साथ चलाया जाता है। हर कार्य या प्रोग्राम को, CPU द्वारा बारी-बारी से आवश्यक समय दिया जाता है एवं जरूरत के आधार पर CPU, एक प्रोग्राम से दूसरे प्रोग्राम में switch करके कार्य करता है।
इस ऑपरेटिंग सिस्टम का मुख्य उद्देश्य – CPU का optimum utilization (बहुत ही कुशलता पूर्वक उपयोग) करना है।
कुल मिलाकर, एक मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम कुशल मल्टीटास्किंग और संसाधन उपयोग (resource utilization) को सक्षम बनाता है, जिससे उपयोगकर्ता एक साथ कई प्रोग्राम चला सकते हैं और पूरे सिस्टम की उत्पादकता में सुधार कर सकते हैं।
अथवा
ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम, जिसके द्वारा एक ही समय में दो या दो से अधिक प्रोग्राम का एग्जीक्यूशन किया जा सकता है मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
इसमें दो या दो से अधिक प्रोग्राम को, मुख्य मेमोरी RAM में लोड कर उन्हें एक साथ ही चलाया जाता है। हर प्रोग्राम/प्रोसेस को CPU का एक निश्चित समय प्रदान किया जाता है जिसे टाइम-स्लाइसिंग कहते हैं। CPU आवश्यकता अनुसार, एक प्रोग्राम से दूसरे प्रोग्राम पर कार्य करता है। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम का लाभ यह है कि इसमें मुख्य मेमोरी व सीपीयू का ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन होता है। चूँकि, सीपीयू की स्पीड, इनपुट आउटपुट ऑपरेशन की तुलना में काफी ज्यादा होती है।
इसका मुख्य उद्देश्य कंप्यूटर संसाधनों (CPU , RAM आदि) का अधिकतम उपयोग करना, साथ ही सिस्टम की प्रदर्शन क्षमता को बढ़ाना है।
Example: Early versions of UNIX (यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के शुरुआत के संस्करण)
अथवा
मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multiprogramming Operating System) वह ऑपरेटिंग सिस्टम है जो एक ही समय में एक से अधिक प्रोग्राम का एग्जीक्यूशन करने की क्षमता रखता है। यह एक प्रमुख प्रोग्रामिंग तकनीक होती है, जिसमें कंप्यूटर का केंद्रीय प्रोसेसिंग इकाई (CPU) तत्कालिक रूप से अलग-अलग प्रोग्रामों में, एक से दूसरे पर स्विच करता है। और प्रत्येक प्रोग्राम को execute करने के लिए बारी-बारी से समय प्रदान करता है। यह केंद्रीय प्रोसेसिंग इकाई (CPU) को सक्रिय और प्रोडक्टिव रखने में मदद करता है, ताकि किसी भी समय पर कई प्रोग्राम एक साथ चला सकें।
इसका मुख्य उद्देश्य होता है – कंप्यूटर संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना, साथ ही सिस्टम की प्रदर्शन क्षमता को बढ़ाना।
Multi-tasking OS
Multi-tasking, ऑपरेटिंग सिस्टम की अद्भुत क्षमता है जिसके अंतर्गत यूजर एक साथ कई एप्लीकेशन प्रोग्राम को रन कर सकता है अर्थात एक साथ ही कई एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर पर कार्य कर सकता है।
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में, दो से ज्यादा टास्क एक साथ ही परफॉर्म किया जा सकते हैं। जैसे एक यूजर MS word की डॉक्यूमेंट फाइल में टाइप कर रहा है उसी समय वह गाने भी सुन रहा है, साथ ही वह MS excel व फोटो शॉप एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर में भी कार्य कर रहा है, किसी को ईमेल भी सेंड कर रहा है।
उदाहरण – Windows, Linux, macOS, Android, iOS आदि OS मल्टीटास्किंग को सपोर्ट करते हैं।
अर्थात ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम जिसमें एक समय पर ही कई एप्लीकेशन प्रोग्राम चलाया जा सकते हैं मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है।
इसके विपरीत सिंगल टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम, जिसमें एक समय में केवल एक ही प्रोग्राम run किया जा सकता है। जैसे – DOS
मल्टीटास्किंग और मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम को टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहा जाता है क्योंकि ये ऑपरेटिंग सिस्टम प्रत्येक प्रोग्राम (टास्क/ जॉब/ प्रोसेस/ कार्य) को execute करने के लिए एक single CPU का टाइम शेयर करते हैं इसके साथ ही ये दोनों OS, कम्प्यूटर के अन्य रिसोर्सेस जैसे कि memory, I/O services आदि को भी साझा करते हैं, ताकि ये multitasking को support कर सकें और एक साथ चलाए जाने वाले सभी प्रोग्रामों का क्रियान्वयन निश्चित समय पर किया जा सके।
Time Slicing – टाइम स्लाइसिंग में CPU के processing time को छोटे अंतरालों में विभाजित करना शामिल है, जिसे टाइम स्लाइस या टाइम क्वांटा कहा (time quanta) जाता है।
संक्षेप में, मल्टीप्रोग्रामिंग एक साथ कई प्रोग्राम चलाकर, सीपीयू के कुशल उपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है।, जबकि मल्टीटास्किंग उपयोगकर्ताओं को एक साथ ही कई प्रोग्राम पर कार्य करने में सक्षम बनाता है। मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम का उद्देश्य user experience और सिस्टम की कार्य क्षमता को बढ़ाना है। Multi-tasking OS का दायरा, multi-processing OS से कहीं जाता होता है।
Multi–Processing OS अथवा Parallel Processing OS
इस प्रकार के सिस्टम में एक ही कंप्यूटर में दो से ज्यादा सीपीयू (processor/ CPU cores) का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक सीपीयू द्वारा एक ही computer bus, memory, clock और I/O devices का उपयोग किया जाता है।
एक ही समय पर कई programs या task का, विभिन्न प्रोसेसर द्वारा एग्जीक्यूशन – मल्टीप्रोसेसिंग कहलाता है।
पैरेलल सिस्टम में कई प्रोसेसर होने के कारण, यह एक ही समय में कई कार्यों को तेज गति के साथ प्रोसेस कर सकता है।
इस प्रकार के सिस्टम में, या तो भिन्न-भिन्न प्रोसेसर द्वारा, स्वतंत्र रूप से अलग-अलग प्रोग्रामों के निर्देशों की प्रोसेसिंग की जाती है, या फिर कई प्रोसेसर मिलकर एक ही प्रोग्राम के अलग-अलग निर्देशों की प्रोसेसिंग करते हैं।
मल्टीप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम, हमें पैरेलल प्रोसेसिंग की सुविधा प्रदान करता है जिससे कई ऑपरेशन्स तेज गति के साथ विभिन्न processors की मदद से, एक ही समय में परफॉर्म करवाए जा सकते हैं।
इस प्रकार के सिस्टम में यदि एक प्रोसेसर कार्य करना बंद कर देता है तो दूसरा प्रोसेसर उसे कार्य को पूरा कर देता है।
जब बड़े डेटा (large data) को काफी तेज गति से प्रोसेस करने की जरूरत होती है तब मल्टी-प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम ही अधिक उपयोगी होता है।
लगभग सभी मॉडर्न कम्प्यूटर multiprocessing को support करते हैं। यदि computer का CPU, एक कोर (one core) से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि कम्प्यूटर multiprocessing को allow करता है।
CPU का एक कोर, एक स्वतंत्र प्रोसेसिंग यूनिट है। प्रत्येक core, स्वतंत्र रूप से निर्देशों को execute करने व गणना करने में सक्षम होता है।
PC, Mini-computer, mainframe computer, super computer आदि में install किये जाने वाले OS मल्टी-प्रोसेसिंग को सपोर्ट करते हैं।
उदाहरण –
कुछ उदाहरण multiprocessing operating systems के –
- Windows NT/2000/XP/Vista/7/8/10/11
- Windows Server
- Linux
- macOS
- FreeBSD
- Solaris
- IBM AIX
- HP-UX
- Oracle Solaris
- SGI IRIX
- IBM z/OS
Real-time OS – वास्तविक-समय ऑपरेटिंग सिस्टम
रियल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम, एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जिसमें कोई विशेष कार्य, एक निश्चित समय सीमा के अंदर पूरा हो जाना चाहिए। इसमें किसी कार्य को करने के लिए, पहले से ही समय सीमा (dead line) निर्धारित होती है, यदि कार्य इस समय सीमा में पूरा नहीं हुआ, तो सिस्टम असफल मान लिया जाता है, या फिर आगे के कार्य या प्रोग्राम में त्रुटि या रुकावट हो सकती है, क्योंकि एक प्रोग्राम का आउटपुट, आगे के दूसरे programs के लिए इनपुट डेटा के रूप में प्रयोग हो सकता है।
रियल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में टाइम (dead line) एक मुख्य बिंदु है।
उदाहरण – रेलवे रिजर्वेशन, वैज्ञानिक अनुसंधान, बैंकिंग, उपग्रह का संचालन आदि, रियल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम के बेहतरीन उदाहरण हैं।
जब किसी बैंकिंग ट्रांजैक्शन या अन्य कार्यों के लिए, हमारे मोबाइल में OTP (वन टाइम पासवर्ड) का मैसेज आता है, और उसमें लिखा होता है कि – “It is valid for 10 minutes”- इसका मतलब है कि यदि हमने 10 मिनट के भीतर यह ओटीपी एंटर नहीं किया तो यह इनवैलिड हो जाएगा और हमारा ट्रांजैक्शन असफल हो जाएगा।
Real-time OS दो प्रकार के होते हैं –
Hard Real-time OS –
यह ऑपरेटिंग सिस्टम यह गारंटी देता है, कि प्रत्येक कार्य एक निश्चित समय सीमा में पूरा हो जाएगा। यह सिस्टम वहॉं प्रयोग किया जाता है जहां, समय की बहुत ही वैल्यू होती है। यदि समय पर कार्य नहीं हुआ, तो बहुत ही ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ता है।
जैसे – aerospace, medical devices आदि।
Soft Real-time OS –
यह ऑपरेटिंग सिस्टम भी यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक कार्य एक निर्धारित समय सीमा में ही पूरा हो, पर यह कुछ फ्लैक्सिबिलिटी भी प्रदान करता है, क्योंकि कुछ कार्य ऐसे होते हैं जो यदि निश्चित समय में पूरे ना भी हों तब भी स्वीकार करना पड़ता है।
जैसे – विभिन्न प्रकार की सेकेंडरी-मेमोरी में read/write करना, क्योंकि प्रत्येक प्रकार की सेकेंडरी-मेमोरी की read/write क्षमता अलग-अलग होती है।
पर यह ऑपरेटिंग सिस्टम, उन कार्यों को प्राथमिकता देता है जिन्हें निश्चित समय सीमा में पूरा करना जरूरी है, तथा यह प्राथमिकता उनके पूरे होने तक बनी रहती है।
उदाहरण – multimedia system, virtual-reality जहॉं कोई कार्य पूरा होने में यदि देरी भी होती है तब भी स्वीकार्य होता है।
Network OS – नेटवर्क ऑपरेटिंग
यह ऑपरेटिंग सिस्टम नेटवर्किंग की सुविधा प्रदान करता है, जिसकी मदद से दो या दो से अधिक computers व devices से को आपस में कनेक्ट करके, डेटा व रिसोर्स शेयरिंग का लाभ लिया जा सकता है।
यह ऑपरेटिंग-सिस्टम, नेटवर्किंग की सभी गतिविधियों को मैनेज व कंट्रोल करता है।
उदाहरण –
- Novell NetWare
- Microsoft Windows Server (including Windows Server 2019, 2016, 2012, etc.)
- Linux-based network operating systems like Ubuntu Server, CentOS, and Red Hat Enterprise Linux
- macOS Server
- FreeBSD
- IBM z/OS
- Solaris
- HP-UX
Distributed OS
डिस्ट्रीब्युटेड ऑपरेटिंग सिस्टम, नेटवर्क-ऑपरेटिंग सिस्टम का एडवांस वर्जन है।
डिस्ट्रीब्युटेड सिस्टम, कई कंप्यूटर्स का समूह होता है, और जो आपस में कम्युनिकेशन-मीडिया द्वारा जुड़े हुए होते हैं। ये सभी कंप्यूटर्स अलग-अलग लोकेशन या देशों में भी हो सकते हैं।
सभी computer system का अपना खुद का हार्डवेयर (memory, processor, I/O devices आदि) होता है और ये सारे कंप्यूटर्स एक साथ मिलकर, यूजर को बहुत ही हाई-क्वालिटी और हाई-स्पीड के साथ सर्विसेज प्रदान करते हैं, और यूजर्स को यह आभास नहीं होता, कि वह कई कंप्यूटर्स या सर्वर से लाभ ले रहा है।
डिस्ट्रीब्युटेड सिस्टम में, कई प्रकार के सर्वर-कंप्यूटर से, कई क्लाइंट कंप्यूटर आपस में कम्युनिकेशन-मीडिया (wired अथवा wireless) के माध्यम से जुड़ सकते हैं और आपस में डेटा, इनफार्मेशन, फाइल, रिसोर्सेस आदि का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
इस ऑपरेटिंग सिस्टम में कोई जटिल कार्य या गणना को, छोटे-छोटे भागों में बॉंटकर,एक साथ जुड़े हुए कंप्यूटर्स को भेज दिया जाता है और ये सारे कंप्यूटर्स आपस में मिलकर अपने-अपने हिस्से का कार्य पूरा करते हैं, और जल्द ही समग्र रूप से कार्य या गणना का रिजल्ट (परिणाम) यूजर को प्रदान करते हैं, इससे इस ऑपरेटिंग सिस्टम की, कार्य करने की स्पीड, बहुत ही तेज होती है।
संक्षेप में,
ऑपरेटिंग सिस्टम, वह सिस्टम सॉफ्टवेयर है, जो कंप्यूटर सिस्टम के सभी हार्डवेयर जैसे कि – CPU, Memory, I/O devices आदि तथा कंप्यूटर में इंस्टॉल्ड सभी एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के मध्य निश्चित तालमेल बनाकर, इनके कार्यों को संचालित (operate), व्यवस्थित (manage) व नियंत्रित (control) करता है।
और यूजर व कंप्यूटर-हार्डवेयर के बीच मध्यस्थ (interface) का कार्य करता है, इसके साथ ही उपयोगकर्ता को कंप्यूटर में application software को रन व उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है, तथा उपयोगकर्ता की आवश्यकता के आधार पर एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को निश्चित हार्डवेयर भी एलोकेट कर, उपयोग करने के लिए परमिशन देता है, जैसे सभी एप्लीकेशन प्रोग्राम को प्रिंट करने के लिए प्रिंटर की सेवा उपलब्ध करवाना।