मॉनिटर (Monitor) क्या है विशेषताऍं एवं प्रकार

मॉनिटर (Monitor)

मॉनिटर, कम्प्यूटर के लिए सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली एक softcopy output device है, जो central processing unit (CPU) के द्वारा सम्पन्न किये गये processing के परिणाम को visual अथवा graphical रूप में प्रदर्शित करता है।

यह computer व user के मध्य विजुअल सम्बन्ध (visual interface) स्थापित करता है। जिससे कम्प्यूटर में काम करना काफी आसान हो जाता है।

अर्थात monitor एक सॉफ्टकॉपी आउटपुट डिवाइस है, जो हमें विजुअल फार्म में computer के output को प्रद‍र्शित करता है।

परिणाम (output) को visual रूप में display करने के कारण, monitor को Visual Display Unit (VDU) भी कहते हैं।

यह समान्यत: television की भॉंति होता है।

कम्प्यूटर के समस्त सूचनाओं एवं आउटपुट को रियल टाइम में देखने के लिए मॉनिटर का उपयोग किया जाता है। इसके बिना computer में कार्य करना लगभग सम्भव नही है इसीलिए इसे main या primary output device भी कहते हैं।

  • मॉनिटर द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली सूचना, चित्र, ग्राफिक्स आदि आउटपुट, छोटे-छोटे चमकीले बिंदुओं से मिलकर बने होते हैं इन बिंदुओं (dots) को पिक्सल्स (pixels) कहते हैं।
  • मॉनिटर की गुणवत्ता dot pitch, resolution व refresh rate द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • मॉनिटर के डिस्प्ले (screen) के आकार को डायगोनली मापा जाता है।
  • मॉनिटर का रिजल्यूशन जितना अधिक होगा, पिक्सल की संख्या उनती ही ज्यादा होगी और प्रदर्शित आउटपुट की क्वालिटी उतनी ही बेहतर होगी।
  • कंप्यूटर के लिए मॉनिटर एक प्राथमिक आउटपुट डिवाइस है।

 

मॉनिटर और स्क्रीन में अंतर – Difference between Monitor and Screen

सामान्यतः “मॉनिटर” एवं “स्क्रीन” दोनों शब्द को मॉनिटर के संदर्भ में ही प्रयोग किया जाता है लेकिन इन दोनों के मध्य अंतर है-

Monitor-

मॉनिटर पूरे डिस्प्ले यूनिट को प्रदर्शित करता है जिसमें screen, frame, monitor stand, buttons और मॉनिटर में लगा हुआ speaker भी शामिल होता है।

जबकि

 Screen –

स्क्रीन का अर्थ केवल विजुअल डिस्प्ले स्क्रीन से ही होता है अर्थात screen, मॉनिटर का केवल एक हिस्सा होती है, जितने भाग में आउटपुट प्रदर्शित होता है।

 

मॉनिटर के प्रकार – Types of Monitor

 

Classification of Monitor – Based on Colour

कलर के आधार पर मॉनिटर के प्रकार

Monitor को उसके द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है-

  1. Monochrome
  2. Gray-scale
  3. Colour Monitor

 

मोनाक्रोम मॉनिटर (Mono-chrome Monitor)-

Monochrome दो शब्दों से मिलकर बना है –

Mono = एक (single)

एवं Chrome = रंग (colour)

अर्थात् ऐसा मॉनिटर जो output को केवल एक रंग में प्रदर्शित करता है, monochrome monitor कहलाता है।

वास्तव में monochrome monitor दो colours को प्रदर्शित करते हैं। दो colours में एक colour बैकाग्राउण्ड के लिए व दूसरा colour फारग्राउण्ड (output) के लिए होता है।

यहॉं ध्यान देने योग्य बात यह है कि, यह मॉनिटर output तो केवल एक ही रंग में प्रस्तुत करता है इसीलिए इसे मोनोक्रोम कहते हैं।

ये रंग – Black and White

Green and Black

Amber and Black आदि हो सकते हैं।

इस तरह के मॉनिटर ज्यादातर उन कम्प्यूटर के लिए उपयोग किए जाते हैं जो केवल text based interface प्रदान करते हैं, एवं जिन कार्यों के लिए colours की आवश्यकता नही होती है। हालाकि ये मॉनिटर टेक्स्ट के अलावा ग्राफिक्स भी प्रदर्शित कर सकते हैं पर केवल एक ही रंगे में।

 

ग्रे-स्केल मॉनिटर (Gray-scale Monitor)-

ग्रे-स्केल मॉनिटर एक विशेष प्रकार के monochrome monitor ही होते हैं, जो output को विभिन्न प्रकार के gray shades में प्रदर्शित करते हैं।

इन monitors का use वहॉं  किया जाता है जिन कार्यों के लिए colors की आवश्यकता नही होती है।

जैसे – medical imaging जैसे कि – x-ray, MRIs and CT Scans, ECG आदि।

 

कलर मॉनिटर (Color Monitor) –

Color monitors, आउटपुट को विभिन्न रंगों (multi colors) में प्रदर्शित करते हैं infact जिस कलर में कोई भी image, videos आदि होते हैं उन्हें उसी रूप में डिस्प्ले करते हैं।

ये मॉनिटर्स red, green एवं blue (RGB) इन तीन रंगों की मदद से, आउटपुट को विभिन्न वास्तविक रंगों में प्रदर्शित करते हैं। इसी कारण इन monitors को RGB मॉनिटर्स भी कहते हैं। अर्थात् ये तीन color (RGB) ही मिलकर लाखों रंगों का निर्माण करते हैं।

इस मॉनिटर में प्रत्येक पिक्सल, इन्हीं तीन रंगो (Red, Green, Blue) के तीन बिन्दुओं (dots) के मिश्रण से मिलकर बने होते हैं। तीन रंगों के मिश्रण से बने होने के कारण इस प्रकार के मॉनिटर high resolution में आउटपुट प्रदर्शित करते हैं।

वर्तमान में कलर मॉनिटर ही सबसे ज्यादा प्रचलित हैं।

उदाहरण –

  • LCD (Liquid Crystal Display) Monitors
  • LED (Light Emitting Diode) Monitors
  • OLED (Organic Light Emitting Diode) Monitors
  • CRT (Cathode Ray Tube) Monitors (older technology)
  • Plasma display (less common now)

 

Classification of Monitor – based on Signals

सिग्नल्स के आधार पर मॉनिटर के प्रकार

सिग्नल्स के आधार पर मॉनिटर को दो भागों में बॉंटा जा सकता है-

  1. Digital Monitor
  2. Analog Monitor

 

डिजिटल मॉनिटर (Digital Monitor)-

डिजिटल मॉनिटर वे मॉनिटर होते हैं जो आउटपुट (visual information) को प्रदर्शित करने के लिए, digital signals को receive एवं process करते हैं, साथ ही ये डिजिटल डिवाइसेस जैसे कि – कंप्यूटर, स्मार्टफोन आदि से कनेक्ट रहते हैं।

यह मॉनिटर digital signals (बाइनरी डेटा 0 व 1) को प्रोसेस करके उच्च गुणवत्ता के images, videos एवं अन्य ग्राफिकल कन्टेन्ट स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है। अर्थात ये मॉनिटर output को high resolution में प्रस्तुत करते हैं।

इन monitors में वोल्टेज की उपस्थिति (1) एवं अनुपस्थिति (0), pixels को on एवं off करती है।

Digital monitor में डिजिटल शब्द इस बात का प्रतीक है कि यह monitor, इनपुट के रूप में केवल video adapter (graphical card) से प्राप्त signals को ही डिजिटल सिग्नल के रूप में स्वीकार करता है।

ये मॉनिटर्स, computer एवं अन्य डिजिटल डिवाइसेस से HDMI (High Definition Multimedia Interface), Display Port, DVI (Digital Visual Interface) एवं USB आदि द्वारा connect होते हैं।

उदाहरण –

  • LCD (Liquid Crystal Display)
  • LED (Light Emitting Diode)
  • OLED (Organic Light Emitting Diode)
  • Gaming Monitors with high refresh rate

एनालॉग मॉनिटर (Analog Monitor) –

एनालॉग मॉनिटर वे मॉनिटर होते हैं जो विजुअल आउटपुट को प्रदर्शित करने के लिए analog signals को receive एवं process करते हैं। इस प्रकार के मॉनिटर जिन सिग्नल्स का उपयोग, output/ information को डिस्प्ले करने के लिए करते हैं वे continuous wave form में होते हैं जो कि समय के साथ बदलते रहते हैं।

डिजिटल मॉनिटर के आ जाने से, वर्तमान समय में एनालॉग मॉनिटर का उपयोग बहुत ही कम हो गया है क्योंकि ये बिजली की खपत ज्यादा करते हैं और आकार में भी बड़े होते हैं एवं इनकी आउटपुट क्वालिटी भी डिजिटल मॉनिटर के मुकाबले बहुत ही लोअर होती है।

उदाहरण  – CRT Monitor

 

Classification of Monitor based on the technology used

उपयोग की गई तकनीक के आधार पर मॉनिटर के प्रकार

  1. CRT Monitor
  2. Flat Panel Monitor (TFT – Thin Film Transistor)

 

CRT Monitor

CRT Monitor का पूरा नाम Cathode Ray Tube Monitor है। यह मॉनिटर CRT का उपयोग output को display करने के लिए करता है, एवं यह “रास्टर ग्रॉफिक्स एवं इलेक्ट्रान के कान्सेप्ट पर आधारित है।

 इस monitor में picture tube element होता है जो कि CRT (Cathode Ray Tube) कहलाता है अर्थात् CRT ही monitor की पिक्चर ट्यूब होती है।

CRT में लगे इलेक्ट्रॉन गन द्वारा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन किरणें (electron beam) जब फास्फोर कोटेड स्क्रीन से टकराती हैं तो चित्र प्रदर्शित होता है, अर्थात स्क्रीन पर visual output प्राप्त होता है।

मॉनिटर पर चित्र छोटे-छोटे dots से मिलकर बने होते हैं ये डॉट्स pixels कहलाते हैं जो स्क्रीन पर horizontally एवं vertically,  एक grid के रूप में व्यवस्थित होते हैं।

पुराने समय में use होने वाली टी.वी. सेट भी इसी सिद्धांत पर कार्य करती थी।

LCD व LED तकनीक के आने से पहले, सर्वाधिक उपयोग होने वाला मॉनिटर सी. आर. टी. मॉनिटर ही था। यह मॉनिटर कीमत में कम एवं अच्छी क्वालिटी का आउटपुट प्रदान करता था।

CRT monitor

सी.आर.टी. मॉनिटर कैसे काम करता है-

CRT मॉनिटर में एक पिक्चर ट्यूब एलिमेंट होता है ठीक वैसे ही जैसे कि पुराने टी.वी. सेट में होता था। यह पिक्चर ट्यूब, Cathode Ray Tube (CRT) कहलाता है। पिक्चर ट्यूब में से air निकाल कर, हवा से रिक्त अर्थात निर्वात (vacuum) कर लिया जाता है अब यह vacuum tube कहलाती है।

इस Cathode Ray Tube अ‍थवा वैक्यूम ट्यूब में इलेक्ट्रॉन गन (कैथोड गन) लगी होती है, एवं मॉनिटर की स्क्रीन में, भीतर की तरफ फास्फोर पदार्थ का लेपन (coating), डॉट्स के रूप में होता है। इलेक्ट्रॉन गन द्वारा इलेक्ट्रान की पतली किरणें (electron beam), फास्फोर कोटिंग पर छोड़ी जाती हैं, ज्यों ही ये किरणें फॉस्फोर कोटिंग से टकरातीं हैं, तो फॉस्फोर उत्तेजित होकर प्रकाश उत्सर्जित करते हैं और स्क्रीन पर दृश्यमान बिन्दु (dots) जो कि फॉस्फोर के बने होते हैं, चमकते हैं, ये बिन्दु ही pixels हैं।

ये इलेक्ट्रॉन की किरणें, रास्टर पैटर्न में अर्थात् क्षैतिज और लम्बवत गमन करके सम्‍पूर्ण स्क्रीन पर पिक्सलों को सक्रिय करती है जिसके फलस्वरूप मॉनिटर स्क्रीन पर चित्र प्रदर्शित होता है।

CRT Monitor में pixels फॉस्फोर के द्वारा बने होते हैं।

हालाकि वर्तमान समय में CRT Monitor प्रचलन में नही हैं, चूँकि ये आकर में बड़े, विद्युत की ज्यादा खपत करने वाले व कम गुणवत्ता के output प्रदान करते हैं।

जबकि आधुनिक मॉनिटर जैसे – LCD, LED अपनी slim design, energy efficiency एवं high quality output प्रदान करने के कारण वर्तमान समय में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाले monitor (display) हैं।

Monochrome CRT monitor में एक इलेक्ट्रान गन (कैथोड गन) लगी होती है। जो केवल एक रंग को उत्पन्न करती है। प्रत्येक pixel, एक ही रंग के फॉस्फोर dot द्वारा बना होता है जो एक ही रंग में चमकता है।

जबकि

Color CRT monitor में तीन इलेक्ट्रान गन लगी होती है जो RGB (red, green, blue) इन तीन रंगों को उत्पन्न करने के लिए अलग-अलग लगाई जाती है। साथ ही प्रत्येक pixel, तीन फास्फोर डॉट्स के संयोजन से मिलकर बने होते हैं ,एक लाल रंग, दूसरा हरा रंग व तीसरा नीला रंग।

ये फॉस्फोर बिन्दु सम्बन्धित इलेक्ट्रान गन द्वारा प्रकाशित होते हैं। प्रत्येक pixel की चमक, इलेक्ट्रॉन बीम की तीव्रता (intensity) पर निर्भर करती है और इलेक्ट्रान बीम की तीव्रता electron guns के voltage पर निर्भर करती है।

ये तीनों electron guns एक साथ मिलकर, प्रत्येक beam (पुंज/किरण) की तीव्रता अलग-अलग करके और स्क्रीन पर विभिन्न फॉस्फोर बिन्दुओं (pixels) को रोशन करके, रंगों की एक विशाल श्रृंखला उत्पन्न करती हैं और हमें रंगीन output/display प्राप्त होता है।

 

Flat Panel Monitor

फ्लैट पैनल मॉनिटर एक पतला व  सपाट (slim and flat) मॉनिटर होता है, जो वजन में हल्का व विद्युत ऊर्जा की बचत करने वाला होता है। CRT Monitor से भिन्न, फ्लैट पैनल मॉनिटर LCD, LED अथवा OLED आदि तकनीकों का प्रयोग output को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं।

वर्तमान समय में सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले मॉनिटर Flat Panel ही हैं। इनका प्रयोग- डेस्कटॉप कंप्यूटर, लैपटॉप, TVs, स्मार्टफोन एवं अन्य डिस्प्ले डिवाइस में होता है।

उदाहरण  –

  • LCD (Liquid Crystal Display)
  • LED (Light Emitting Diode)
  • OLED (Organic Light Emitting Diode)
  • Gaming Monitors with high refresh rate

ये मॉनिटर्स high resolution के साथ high quality का visual colorful experience प्रदान करते हैं। HD, FHD, 4K, 8K, 12K आदि में उपलब्ध हैं। इसके साथ ही इन monitors की output quality एवं design में लगातार improvement होता जा रहा है।

 

Characteristics of monitor – मॉनिटर की विशेषताऍं

अथवा

Performance measurements of a monitor – मॉनिटर की गुणवत्ता का निर्धारण करने वाले कारक

मॉनिटर की गुणवत्ता का निर्धारण निम्नलिखित तत्वों / लक्षणों द्वारा किया जाता है जो इसकी विशेषता को भी प्रदर्शित करते हैं ये लक्षण या तत्व या विशेषताऍं  निम्नलिखित हैं –

  • Size (आकार)
  • Pixel (पिक्सेल)
  • Color Depth अथवा Bit Depth
  • Resolution (रेज़ॉल्यूशन)
  • Dot Pitch (डॉट पिच)
  • Refresh Rate
  • Response Time (प्र‍तिक्रिया समय)
  • Viewing  Angle
  • Bandwidth (बैंडविड्थ)

Size (आकार)

Monitor में प्रदर्शित होने वाले output के आकार को जानने के दो तरीके हैं –

पहला Aspect Ratio एवं दूसरा Screen Size

Aspect Ratio

अस्पेक्ट रेशियों में मॉनिटर के screen को, चौड़ाई व ऊँचाई के अनुपात में मापा जाता है।

अर्थात the proportional relationship between width and height is called Aspect Ratio.

जैसे- Widescreen LCD Monitor का aspect ratio सामान्यत: 16:9 होता है। जिसमें स्क्रीन की चौड़ाई एवं ऊचाई का अपनुपात 16:9 होता है।

अन्य aspect ratio -16:10 व 21:9 आदि।

Screen Size

Monitor का screen, मॉनिटर की वह area होती है जितने भाग में visual output प्रदर्शित होता है। यह monitor का एक हिस्सा होती है जिसमें कम्प्यूटर द्वारा जनरेट किये गए output जैसे कि –images, texts, videos आदि देखे जाते हैं।

मॉनिटर की स्क्रीन के आकार (size) को एक कोने से दूसरे विपरीत कोने तक विकर्ण रूप से (diagonally) मापा जाता है।

Monitor size

 

सामान्यत: screen के size को inches एवं cm में represent किया जाता है।

सामान्य कार्यों जैसे कि home uses, office uses एवं general computing के लिए सामान्यत: 18-24 inch तक के screen वाले monitor का उपयोग करना अच्छा होता है। बड़े आकार के स्क्रीन वाले मॉनीटर सामान्यत: video editing एवं gaming आदि के लिए यूज किये जाते हैं।

Pixel (पिक्सेल)

Pixel, पिक्चर एलिमेंट (Picture Element) का संक्षिप्त रूप है। मॉनिटर द्वारा स्क्रीन पर प्रदर्शित किए जाने वाले समस्त outputs जैसे कि –text, image, video एवं इन सब का कॉन्बिनेशन आदि सभी पिक्सेल के द्वारा ही बने होते हैं।

पिक्सेल, छोटे-छोटे चमकीले, कलर युक्त बिंदुओं (dots) के रूप में होते हैं और यही पिक्सेल आपस में मिलकर, मॉनिटर द्वारा प्रस्तुत सभी तरह के outputs का निर्माण करते हैं।

हम अपनी आवश्यकतानुसार monitor के resolution की सेटिंग भी कर सकते हैं, तथा अनेक graphics software जैसे कि – Photoshop, Corel draw आदि की मदद से image में Pixel की संख्या जोड़ या घटा कर resolution को कम या ज्यादा भी कर सकते हैं।

Note – Monitor द्वारा प्रदर्शित सभी प्रकार के outputs (text, image, video आदि) की सबसे छोटी इकाई (smallest unit of monitor’s output) pixel ही होती है। जो कि एक single dot अथवा single point/sub pixel के रूप में होते हैं। जितने ज्यादा pixel, डिस्प्ले में होंगे, उतना ही ज्यादा resolution होगा एवं उतना ही स्पष्ट output होगा।

Screen/Display में पिक्सेल horizontally (row) एवं vertically (column) में व्यवस्थित होते हैं। इन rows एवं columns का संयोजन एक ग्रिड स्टक्चर (dot matrix) बनाता है और इन pixels के द्वारा बना हुआ grid structure, स्क्रीन पर visual content/output प्रदर्शित करता है।

Screen पर row एवं column का इन्टरसेक्शन (कटाक्ष बिन्दु) एक pixel को represent करता है।

Monochrome monitor में प्रत्येक पिक्सेल, single dot (single sub-pixel) के बने होते हैं।

जबकि color monitor में प्रत्येक pixel, तीन dots (three sub-pixel) – एक लाल, एक हरा एवं एक नीले रंग (RGB) के बने होते हैं। ये RGB color model कहलाते हैं।

अलग-अलग इंटेंसिटी पर इन्हीं तीन रंगों का संयोजन, रंगों की एक विस्तृत श्रृंखला क्रिएट कर देता है, जिसे आप कलर मॉनिटर में देख पाते हैं।

Color Depth अथवा Bit Depth

मॉनिटर में, प्रत्येक पिक्सेल को रिप्रेजेंट करने में प्रयोग की गई bits की संख्या color depth अथवा bit depth कहलाती है जो यह निर्धारित करती है कि monitor द्वारा कितने colors या shades को प्रदर्शित किया जा सकता है।

अर्थात pixel को प्रदान की गई bits की संख्या, जिसे color depth या bit depth कहते हैं, यह निर्धारित करती है कि प्रत्येक पिक्सेल को कितने तरह के कलर या shades प्रदान किये जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए – 8 bit color monitor, प्रत्येक pixel के लिए 8 bits का प्रयोग करता है, जिससे यह monitor 28 = 256 color एक समय में ही प्रदर्शित कर सकता है।

8 bit color monitor में तीन प्राथमिक रंगों (Red, Green, Blue) में से प्रत्येक के लिए 8 bits आवंटित किया जाता है जिससे प्रत्येक रंग के लिए 8 bits के साथ, प्रत्येक color channel के लिए 28=256 संभावित इंटेंसिटी लेवल प्राप्त होते हैं।-

अर्थात प्रत्येक color, 256 तरह के shades प्रस्तुत कर सकता है।

चूँकि color monitor में तीन color (RGB) होते हैं, तो –

Red    = 28 = 256 possible intensity levels (shades of Red color)

Green = 28 = 256 possible intensity levels (shades of Green color)

Blue    = 28 = 256 possible intensity levels (shades of Blue color)

इस प्रकार इन तीनों रंगों की intensity level को मिलाकर टोटल 256×256×256=16.8 million unique color कॉन्बिनेशन प्राप्त होता है।

पर 8 bit monitor, एक समय में, एक साथ, केवल 256 भिन्न कलर ही डिस्प्ले कर सकता है।

हालाकि इस monitor में 256×256×256=16.8 million color combinations उपलब्ध होते है और यह 16.8 million color डिस्प्ले कर सकता है पर अलग-अलग समय में।

अर्थात् 8 bit color monitor अपनी 8 bit color depth के द्वारा किसी भी समय, केवल 256 अलग-अलग रंगों को ही एक साथ प्रदर्शित करने तक सीमित है।

यह सीमा प्रत्येक color channel (R,G,B) के लिए उपलब्ध intensity levels की निश्चित संख्या से उत्पन्न होती है।

 

मॉनिटर की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि यह कितने पिक्सल प्रदर्शित कर सकता है एवं प्रत्येक पिक्सल को प्रदर्शित करने के लिए कितने bits का प्रयोग किया गया है।

प्रत्येक पिक्सल को प्रदर्शित करने के लिए उपयोग की गई bits की संख्या ही यह निर्धारित करती है कि कोई मॉनिटर कितने तरह के colors या shades प्रदर्शित कर सकता है।

जैसे 8 bit color monitor एक समय में 28 = 256  अलग-अलग रंगों को प्रदर्शित कर सकता है, जबकि 24 bit color monitor एक समय में ही 224 = 16.8 million अलग-अलग  रंगों को प्रदर्शित कर सकता है। 24 bit कलर मॉनिटर true color monitor कहलाते हैं।

वर्तमान समय में 24 या 32 bit depth या इससे भी ज्यादा bit depth वाले मॉनिटर उपयोग किये जा रहे हैं।

 

Resolution (रेज़ॉल्यूशन)

स्क्रीन पर इकाई क्षेत्रफल में फैले हुए pixels की संख्या रेज़ॉल्यूशन को व्यक्त करती है।

ये pixels स्क्रीन पर horizontally (row में) एवं vertically (column में) व्यवस्थित होते हैं और इन्हीं row एवं column में फैले हुए कुल pixels की संख्या रेजोल्यूशन को प्रदर्शित करती है।

Pixels, स्क्रीन में बहुत पास-पास होते हैं ऐसा लगता है कि ये आपस में जुड़े हुए हैं।

स्क्रीन में जितने ज्यादा pixels की संख्या होगी, resolution उतना ही ज्यादा होगा एवं मॉनिटर द्वारा प्रदर्शित आउटपुट की क्वालिटी उतनी ही स्पष्ट व बेहतर होगी।

 

रिज़ॉल्यूशन को DPI (Dots Per Inch) एवं PPI (Pixels Per Inch) से व्यक्त किया जाता है।

प्रिंटर के resolution को DPI से जबकि मॉनिटर एवं अन्य डिस्प्ले डिवाइस के resolution को PPI से व्यक्त किया जाता है।

DPI = Printing resolution (number of ink-dots per inch on paper)

PPI = display resolution (number of pixels per inch on screen)

 

DPI जितना ज्यादा होगा, प्रिंटिंग क्वालिटी उतनी ही बेहतर होगी, और प्राप्त हुआ प्रिंट-आउट क्लियर एवं शार्प होगा।

PPI जितना ज्यादा होगा, मॉनिटर द्वारा चित्र प्रदर्शित करने की क्वालिटी उतनी ही बेहतर होगी, एवं स्क्रीन पर प्रदर्शित होने वाला आउटपुट साफ व क्लियर होगा।

 

उदाहरण –

1920×1080 pixel resolution (Full HD Monitor), इसका मतलब है कि screen में 1920 pixels कॉलम में horizontally एवं 1080 pixels रो में vertically व्यवस्थित हैं।

Resolution के अन्य उदाहरण –

  • 1024×768 (HD)
  • 1280×1024
  • 1600×1200
  • 2560×1440 (Quad HD)
  • 3840×2160 (4K, Ultra HD)
  • 7680×4320 (8K)

 

Dot Pitch (डॉट पिच)

यह एक measurement (माप) है। डिस्प्ले स्क्रीन में पिक्सलों के मध्य दूरी को डॉट पिच द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

Dot Pitch को Pixel Pitch अथवा Phosphor Pitch भी कहते हैं। एवं इसे मिलीमीटर (mm) में मापा जाता है।

मॉनिटर की विशेषताओं में Dot Pitch महत्वपूर्ण है जिसके द्वारा डिस्प्ले मॉनिटर की गुणवत्ता का निर्धारण होता है।

Dot Pitch जितना कम होगा, पिक्सल आपस में उतने ही पास होंगे, जिसके परिणाम स्वरुप पिक्सल का घनत्व ज्यादा होगा और पिक्चर क्वालिटी उतनी ही शार्प व क्लियर होगी।

इसके विपरीत pixels के मध्य दूरी ज्यादा होने से, अर्थात Dot Pitch ज्यादा होने के कारण picture व text की quality अच्छी नहीं होगी और वे छितरे हुए प्रतीत होंगे।

जब किसी image में pixels की दूरी ज्यादा होती है अर्थात Dot Pitch ज्यादा होती है तो उस image को यदि हम zoom in करके बड़ी करेंगे तो वह फटेगी अर्थात इमेज के पिक्सेल छितरे हुए दिखाई देने लगते हैं और image स्पष्ट नहीं दिखाई देगी।

पर्सनल कम्प्यूटर में उपयोग किये जाने वाले रंगीन मॉनिटर के लिए Dot Pitch की range सामान्यत: 0.15mm से 0.30mm तक होती है। और अक्सर इसी range के बीच वाले मॉनिटर offline/online stores में मिलते हैं।

 

Refresh Rate

एक सेकेण्ड में, screen पर दिखाई देने वाले कॉन्टेन्ट (image, text, videos, animation, diagram आदि) जितनी बार refresh/ redraw होते हैं, वह monitor की रिफ्रेश रेट कहलाती है।

इस प्रक्रिया में एक second में संपूर्ण स्क्रीन कई बार refresh, update अथवा redraw होती है, यह गति इनती तेज होती है कि यूजर समझ नहीं पता, उसे ऐसा अनुभव होता है कि स्क्रीन पर दिखाई देने वाले image, videos आदि एक सामान्य तरीके से दिखाई दे रहे हैं, या एक सही गति (motion) के साथ चल रहे हैं।

मॉनिटर के लिए रिफ्रेश रेट को हर्ट्ज (Hertz) में मापा जाता है।

ज्यादा रिफ्रेश रेट होने का लाभ यह है कि तेज गति वाले contents अथवा scenes  जैसे कि movies, animations, videos आदि smooth गति के साथ play एवं run होते हैं। यह motion blur को काम करता है और मॉनिटर का flicker (टिमटिमाना) भी उतना ही कम होता है।

संक्षेप में, –

Monitor screen का प्रति सेकंड update/ redraw/ refresh होने की दर उसकी रिफ्रेश रेट कहलाती है।

अर्थात

मॉनिटर, प्रति सेकेण्ड जितनी बार अपने content को refresh/ update अथवा redraw कारता है वह उसकी Refresh Rate कहलाती है। इसे हर्ट्ज (Hertz) में मापा जाता है।

अधिकतम रिफ्रेश रेट जैसे कि 60 Hz, 75 Hz, 144 Hz अथवा 240 Hz आदि का मतलब है कि monitor, प्रति सेकंड कई बार image आदि को refresh करता है, जिसके परिणाम स्वरूप user को एक सही motion (गति) के साथ visual experience होता है। साथ ही उच्चतम रिफ्रेश रेट, motion blur को भी reduce करता है।

वर्तमान समय में मिलने वाले monitor का रिफ्रेश रेट 75 Hz या इससे ज्यादा ही होता है।

Monitor का refresh rate जितना ज्यादा होगा, pixel उतनी ही स्पीड से अपनी state अथवा अपना color चेंज कर पाएंगे जिसकी वजह से fast moving content, क्लियर एवं motion blur से free होंगे।

Motion Blur – यह एक visual phenomenon (घटना) है जहां monitor screen में तेज गति वाली scenes अथवा objects धुंधले दिखाई देने लगते हैं।

अगर screen जल्दी-जल्दी रिफ्रेश नहीं होगी अर्थात् refresh rate कम होगा तो screen पर दिखाई देने वाले content जैसे कि text, picture आदि हिलते और लहराते हुए दिखाई देगें, एवं तेज गति वाली scenes जैसे कि – videos, animations, games आदि धुँधले प्रतीत होंगें।

Monitor screen में motion blur तब उत्पन्न होता है जब screen पर दिखायी देने वाले वाले content की गति तेज होती है लेकिन screen का refresh rate कम होता है।

Response Time (प्र‍तिक्रिया समय)

Monitor का रिस्पांस टाइम यह निर्धारित करता है कि एक pixel कितने समय में एक अवस्था (state/ colour) से दूसरे अवस्था में परिवर्तित होता है। Response time को मिली सेकंड (ms) में मापा जाता है।

रिस्पांस टाइम जितना कम होगा, उतनी ही तेजी से पिक्सल अपनी दशा या कलर परिवर्तित करेंगे, जिसके परिणामस्वरुप एक सहज गति के साथ कंटेंट मॉनिटर स्क्रीन पर प्रदर्शित होंगे।

जब कंप्यूटर पर game खेला जाता है या तेज गति वाले videos आदि देखे जाते हैं तब Response time जितना कम होता है उतना ही अच्छा विजुअल एक्सपीरियंस प्राप्त होता है।

 

Viewing  Angle –

मॉनिटर का व्यूइंग एंगल वह maximum angle है जिससे user, मॉनिटर द्वारा प्रदर्शित आउटपुट को अलग-अलग पोजिशन में रहकर देख सकता है।

User, मॉनिटर पर प्रदर्शित output को अधिकतम कितने एंगल्स (सामने, दाऍ, बाऍं आदि) से देख सकता है बिना आउटपुट की क्वालिटी को खोए हुए, यह मॉनिटर के viewing angle द्वारा define किया जाता है।

इसको स्क्रीन के सेंटर से हॉरिजॉन्टली एवं वर्टिकली, डिग्री में मापा जाता है।

मॉनिटर द्वारा बेहतर विजिबिलिटी प्रदान करने के लिए उसका व्यूइंग एंगल विभिन्न positions के लिए wide अर्थात 178horizontally एवं vertically जरूर होना चाहिए ।

 

Bandwidth (बैंडविड्थ)

Monitor के bandwidth का तात्पर्य – video signal bandwidth से है,

जिसका मतलब – data की वह मात्रा जो एक निश्चित समय में computer द्वारा monitor को प्रेषित की जाती है मॉनिटर की बैंडविड्थ कहलाती है

Bandwidth – Data transfer capacity of the video signals between the computer and monitor is called bandwidth.

डिजिटल मॉनिटर के लिए monitor की bandwidth –

Bit/second

Byte/second

Kb/second

Mb/second आदि से मापी जाती है, जबकि Analog monitor के लिए बैंडविड्थ Hertz (Hz) अथवा Mega hertz (MHz) द्वारा मापी जाती है।

 

Note –

  • Resolution में – Pixels की horizontal line, स्कैन लाइन (scan line) कहलाती है। एवं vertical line को कॉलम (column) कहते हैं।
  • कई pixels आपस में मिलकर monitor द्वारा प्रदर्शित image, text, video आदि output का निर्माण करते हैं।
  • Resolution से तात्पर्य,- किसी display या image में मौजूद horizontal एव vertical दोनो आयामों (dimensions) में pixels की संख्या से हैं। इसे अक्सर pixels की कुल संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। जैसे – 1920×1080

1920 = width को represent करता है। (horizontal line)

एवं 1080= height को represent करता है। (vertical line)

  • High resolution के परिणामस्वरूप अधिक स्पष्ट और अधिक विस्तृत image प्राप्त होता है, क्योंकि सूचना को प्रदर्शित करने के लिए ज्यादा pixels उपस्थित होते हैं।

 

Monitors के अन्य प्रकार

  • Touch Screen Monitor
  • Curved Monitor
  • Gaming Monitor

 

Touch Screen Monitor –

टच स्क्रीन मॉनिटर, आधुनिक मॉनिटर का एक प्रकार है जो उपयोगकर्ताओं को स्क्रीन को सीधे छूकर कंप्यूटर या अन्य डिवाइस के साथ इंटरैक्ट करने की अनुमति देता है। कीबोर्ड या माउस का उपयोग करने के बजाय, उपयोगकर्ता अपनी उंगलियों या स्टाइलस से स्क्रीन को छूकर कमांड इनपुट कर सकते हैं, मेन्यू नेविगेट कर सकते हैं और एप्लिकेशन के साथ इंटरैक्ट कर सकते हैं। इन मॉनिटर्स का उपयोग अक्सर ATM, Point of sale system, Laptops एवं tablets में किया जाता है।

Curved Monitor –

घुमावदार मॉनिटर (Curved Monitor) भी आधुनिक मॉनिटर हैं जिसमें थोड़ी सी घुमावदार स्क्रीन (curved screen) होती है, यह घुमाव अवतल (concave) आकार में होता है। पारंपरिक फ्लैट-स्क्रीन मॉनिटर के विपरीत, जिनकी सतह सपाट होती है, घुमावदार मॉनिटर को मानव आंख की प्राकृतिक वक्रता से मेल खाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो अधिक गहन देखने का अनुभव प्रदान करता है। इस मॉनिटर में output बड़े आकार में प्रदर्शित होते हैं।

curved monitor

इनमें Better Viewing Angles, Wider Field of View, Reduced Distortion, Immersive Viewing Experience आदि प्रमुख विशेषताएं होतीं हैं। सामान्यत: इनका प्रयोग गेमिंग एवं मल्टीमीडिया उद्देश्यों के लिए किया जाता है। पर इनकी कीमत ज्यादा होती है।

Gaming Monitor –

गेमिंग मॉनिटर, गेमिंग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विकसित किया गया मॉनिटर है, यह मॉनिटर High Refresh Rate, Low Response Time, Enhanced Visual Technologies, High Resolution and Immersive Displays आदि प्रमुख विशेषताएं से परिपूर्ण होता है, जिससे गेम खेलते समय गेमर भरपूर आनन्द ले सके।


इनपुट डिवाइस क्या है एवं विभिन्न तरह के इनपुट डिवाइसेस 

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