DOS की बूटिंग प्रक्रिया – Booting Process of DOS

Process of Booting of DOS

Booting क्या है और DOS की बूटिंग प्रक्रिया

Booting क्या है?

Booting, कंप्यूटर की एक प्रक्रिया है जो पावर स्विच को ऑन करने से लेकर DOS prompt (DOS के लिए) अथवा Desktop screen (Windows OS के लिए) आने तक की होती है।

जब आप कंप्यूटर को चालू करने के लिए पावर बटन को ऑन करते हैं या कंप्यूटर को रीस्टार्ट करते हैं तो यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया में हार्डवेयर की जांच होती है कि वे सही तरीके से कार्य कर रहे हैं या नहीं, फिर ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) सेकेंडरी मेमोरी (HDD/ Floppy disk) से अस्थायी मेमोरी RAM में  load होता है। और RAM में लोड होन के बाद OS का इन्टरफेस यूजर को दिखाई देता है।

यदि यूजर ने DOS को computer में install किया है तो DOS prompt दिखाई देता है और यदि Windows OS इन्स्टॉल किया है तो Desktop screen दिखाई देती है और बूटिंग प्रक्रिया का समापन हो जाता है एवं कंप्यूटर तैयार हो जाता है यूजर के उपयोग के लिए।

Note – यदि आपने अपने कम्प्यूटर में पासवर्ड डाला है तो ऑपरेटिंग सिस्टम, रैम में लोड होने के बाद login screen दिखाता है और आप पासवर्ड एंटर करके कंप्यूटर पर कार्य कर सकते हैं।

अत: बूटिंग की प्रक्रिया में कंप्यूटर के हार्डवेयर व ऑपरेटिंग सिस्टम को तैयार किया जाता है ताकि यूजर, कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सके।

 

महत्वपूर्ण बिन्दु –

  • पहले से चल रहे कंप्यूटर को रीस्टार्ट करना – रिबूटिंग कहलाता है।
  • सिस्टम को बूट करने का अभिप्राय – ऑपरेटिंग सिस्टम को disk से RAM में लोड करना होता है। ज्यों ही ऑपरेटिंग सिस्टम RAM में लोड हो जाता है बूटिंग की प्रक्रिया संपन्न हो जाती और कंप्यूटर तैयार हो जाता है यूजर यूज करने के लिए।

 

DOS की बूटिंग प्रक्रिया

DOS की बूटिंग प्रक्रिया कई चरणों में संपन्न होती है जो निम्नलिखित है –

DOS की बूटिंग का मतलब DOS की तीन प्रमुख फाइलों IO.SYS, MS-DOS.SYS तथा COMMAND.COM का कंप्यूटर की सेकेंडरी मेमोरी (HDD/ Floppy disk) से कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी रैम में लोड होना।

जब ये तीनों फाइल्स RAM में लोड हो जाती हैं और मॉनिटर पर A:\ या C:\ (as command prompt) आ जाता है तो यह प्रदर्शित करता है कि DOS की बूटिंग प्रक्रिया संपन्न हो गई और कंप्यूटर कार्य करने के लिए तैयार है।

अथवा

कंप्यूटर की पावर बटन  को ऑन करने से लेकर, मॉनिटर की स्क्रीन पर DOS prompt आने तक की प्रक्रिया डॉस की बूटिंग प्रक्रिया कहलाती है।

इस प्रक्रिया में डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम, disk से RAM में लोड होता है और ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर के कार्य के लिए तैयार हो जाता है।

 

DOS की बूटिंग प्रक्रिया के चरण (steps)

Booting Process of DOS

  1. Power button  on

यह बूटिंग प्रक्रिया का पहला स्टेप है जिसमें यूजर द्वारा कंप्यूटर की पावर बटन को ऑन किया जाता है जिससे हार्डवेयर (CPU) इलेक्ट्रिसिटी प्रकार कार्य करना शुरू कर देता है।

 

  1. BIOS का क्रियान्वयन अथवा UEFI (Unified extensible firmware interface) का क्रियान्वयन

सीपीयू सर्वप्रथम एक प्रोग्राम BIOS (Basic Input Output System) को क्रियान्वित करता है। यह बायोस प्रोग्राम computer के motherboard में परमानेंट मेमोरी (रोम) में संग्रहित होता है, जो कि सिलीकॉन की बनी होती है।

 

  1. POST (Power On Self Test)

बायोस  प्रोग्राम में पोस्ट को शुरू (initialize) करने के निर्देश होते हैं। ज्यों ही यूजर पावर बटन को ऑन करता है कंप्यूटर (CPU) बायोस में लिखे इस टेस्ट (जांच) के निर्देशों को रन करता है।

BIOS प्रोग्राम, पावर आन सेल्फ टेस्ट में सर्वप्रथम रैम (main memory) की जांच करता है यदि इसमें कोई त्रुटि है तो error message कंप्यूटर-स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है और बूटिंग प्रक्रिया रुक जाती है। लेकिन यदि RAM सही से काम कर रही है, तो उसके बाद कंप्यूटर से जुड़े अन्य हार्डवेयर कंपोनेंट्स (इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस, डिस्क, वीडियो कार्ड आदि की) जांच की जाती है यदि कोई हार्डवेयर कंपोनेंट प्रॉपर्ली वर्क नहीं कर रहा है तो कंप्यूटर वीपिंग साउंड प्रदान करता है और एरर मैसेज भी मॉनिटर-स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है लेकिन यदि सभी हार्डवेयर कंपोनेंट प्रॉपर वर्क कर रहें हैं तो सभी उपकरणों की लाइट चमकती (flash) है।

BIOS program ही POST को कंडक्ट करता है।

 

  1. MBR (Master Boot Record)

बायोस, POST के द्वारा हार्डवेयर कंपोनेंट की जांच करता है यदि सभी कॉम्पोनेंट सही तरीके से कार्य कर रहे हैं तो यह MBR (Master Boot Record) की खोज करता है। MBR, बूटेबल डिस्क के प्रथम फिजिकल सेक्टर (प्राइमरी पार्टीशन) में उपलब्ध होता है।

बूटेबल डिस्क वह द्वितीयक मेमोरी होती है जिसमें ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। यह हार्ड डिस्क ड्राइव भी हो सकती है और अन्य मेमोरी जैसे कि – फ्लॉपी डिस्क या पेन ड्राइव या सीडी/डीवीडी रोम आदि भी हो सकती है। जो वर्तमान समय में कंप्यूटर आ रहे हैं उनमें ऑपरेटिंग सिस्टम सॉलिड स्टेट ड्राइव (SSD) में भी हो सकता है पर जब फ्लॉपी-डिस्क, कंप्यूटर में सेकेंडरी मेमोरी (सहायक मेमोरी) के रूप में उपयोग की जाती थी तो ऑपरेटिंग सिस्टम फ्लॉपी डिस्क में ही होता था।

बायोस जितने भी प्रकार की मेमोरी डिटेक्ट करता है सभी को एक क्रम से चेक करता है।

मान लीजिए यह क्रम (sequence) निम्नानुसार है –

  1. HDD
  2. Floppy Disk
  3. Pen Drive
  4. CD /DVD ROM

अब बायोस सबसे पहले MBR प्राप्त करने के लिए HDD को चेक करता है यदि प्राप्त कर लिया तो आगे की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। लेकिन यदि नही प्राप्त किया तो फ्लॉपी डिस्क को, फिर पेन ड्राइव को, इसके बाद सीडी रोम को चेक करता है। यदि किसी भी मेमोरी में MBR की खोज नहीं हो पाती, तो बायोस मॉनिटर स्क्रीन पर एक मैसेज शो करता है कि “no boot device found” और बूटिंग प्रक्रिया रुक जाती है। पर यदि किसी भी बूटेबल डिस्क में MBR मिल जाता है तो बूटिंग प्रक्रिया अगले स्टेप्स के लिए आगे बढ़ जाती है

जैसे ही बायोस किसी भी बूटेबल डिस्क में MBR की खोज कर लेता है वैसे ही MBR से बूटस्ट्रैप-लोडर अथवा ऑपरेटिंग सिस्टम लोडर को बूटेबल डिस्क से main memory (RAM) में लोड कर देता है।

MBR ही Bootstrap loader अथवा Operating system loader को संग्रहित करके रखता है।

बूटस्ट्रैप लोडर (Bootstrap loader) – एक छोटा सा प्रोग्राम या कोड होता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम को सेकेंडरी मेमोरी (बूटेबल डिस्क) से कंप्यूटर की मेंन मेमोरी (RAM) में लोड करता है और बूटिंग प्रक्रिया को संपन्न करता है इसीलिए इसे ऑपरेटिंग सिस्टम लोडर भी कहते हैं।

Note –

  • MBR contains – Boot Sector
  • Boot Sector contains – Bootstrap Loader
  • Bootstrap Loader loads the OS on RAM
  • Bootstrap Loader is also called OS loader or Bootstrap code

 

  1. DOS Kernel

यह बूटिंग प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है जिसमें बूटस्ट्रैप लोडर या बूट प्रोग्राम द्वारा ऑपरेटिंग सिस्टम को बूटेबल डिस्क से मेन मेमोरी में लोड किया जाता है और आगे का कंट्रोल इन फाइलों (os की files) को सौंप दिया जाता है।

बूटस्ट्रैप लोडर Dos Kernel (डॉस कर्नेल) को बूटेबल डिस्क (हार्ड डिस्क, फ्लॉपी डिस्क आदि) से मेन मेमोरी (RAM) में लोड करता है।

DOS Kernel, डॉस (Disk Operating System) का मुख्य और केंद्रीय भाग (core part) होता है जो कि दो विशेष सिस्टम फाइलों (IO.SYS तथा MSDOS.SYS) से मिलकर बना होता है ये दोनों फाइलें छुपी हुई अवस्था (hidden mode) में होतीं हैं।

सबसे पहले बूटस्ट्रैप लोडर DOS की फाइल IO.SYS को RAM में लोड करता है और इसके कोड को एग्जीक्यूट करता है।

इसके बाद IO.SYS, MSDOS.SYS फाइल को एग्जीक्यूट करता है ये दोनों फाइल्स मिलकर DOS Kernel का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। इन files को हम file list में नहीं देख पाते हैं, चूँकि ये दोनों फाइलें hidden mode में होतीं हैं।

MSDOS.SYS, डॉस की मुख्य file होती है।

Functions of DOS Kernel –

डॉस कर्नेल, कंप्यूटर हार्डवेयर और ऑपरेटिंग सिस्टम के बीच संपर्क (इंटरफेस) स्थापित करता है और चल रहे प्रोग्राम/प्रोसेस के लिए आवश्यक रिसोर्सेस प्रदान करता है। इसके अलावा – फाइल मैनेजमेंट, प्रोसेस एग्जीक्यूशन, इनपुट आउटपुट हैंडलिंग, मेमोरी मैनेजमेंट, एवं यूजर और कंप्यूटर हार्डवेयर के मध्य संपर्क स्थापित करता है। अर्थात यूजर द्वारा दिए गए कमांड को समझकर हार्डवेयर से कार्य कराता है।

 

  1. System Configuration –

Booting के इस चरण में, MSDOS.SYS file मेमोरी में load व execute होने के बाद CONFIG.SYS फाइल को ढूँढ़ती है। इस file की मदद से हम system के हार्डवेयर की configuration तय कर सकते हैं। या बदल सकते हैं अर्थात हार्डवेयर के फंक्शन्स के लिए आंतरिक सेटिंग कर सकते हैं।

यह एक text फाइल होती है जो कि edit की जा सकती है। इस फाइल की मदद से हम किसी भी हार्डवेयर डिवाइस (माउस, की-बोर्ड, प्रिंटर आदि) को कंप्यूटर सिस्टम के कम्पैटिबल बनाने के लिए (कंप्यूटर सिस्टम में चलने के लिए) device driver software को मेमोरी में स्टोर करते हैं।

किसी भी देश की भाषा का निर्धारण करना, मेमोरी के खाली स्पेस को दिखाना, एक समय में कितनी फाइल्स खोल सकते हैं इसका निर्धारण करना आदि कार्य किया जा सकते हैं।

साथ ही इस फ़ाइल का महत्वपूर्ण कार्य, यूजर को disk पर मूल डायरेक्टरी बनाने की सुविधा प्रदान करना होता है।

अर्थात यह फाइल, यूजर को कस्टमाइजेशन की सुविधा प्रदान करती है।

 

  1. COMMAND.COM –

अब DOS की एक और महत्वपूर्ण प्रोग्राम फाइल RAM में लोड होती है जोकि एक command interpreter file होती है और यूजर द्वारा टाइप किए गए command को मशीन लैंग्वेज में इंटरप्रेट करके प्रोसेस करती है।

अर्थात यह फाइल कमांड को एग्जीक्यूट करवा कर कंप्यूटर से हमारा संबंध स्थापित करती है।

साथ ही COMMAND.COM फाइल DOS के Internal commands (आंतरिक कमांड्स) को भी स्टोर करके रखती है।

 

  1. AUTOEXCE.BAT –

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि यह ऑटो एग्जीक्यूटेबल फाइल होती है, अर्थात यह फाइल्स स्वत: ही एग्जीक्यूट (क्रियान्वित) हो जाती है।

यह DOS की एक महत्वपूर्ण बैच (BATCH) फाइल है, जिसे बूटिंग प्रक्रिया के अंतिम चरण में COMMAND.COM फाइल द्वारा स्वयं ही एग्जीक्यूट कर दिया जाता है। इसे एग्जीक्यूट करने के लिए इसका नाम टाइप नहीं करना पड़ता है।

यह फाइल कंप्यूटर की root directory (मूल डायरेक्टरी) में स्थित होती है।

AUTOEXCE.BAT file हमें command (निर्देशों) के द्वारा कस्टॅमाइजेशन की सुविधा प्रदान करती है। इसमें कई निर्देश होते हैं जिनकी मदद से हम time, date, prompt एवं file या program का पाथ देख सकते हैं और बदला भी जा सकता है। मतलब इन चीजों की हम अपने अनुसार सेटिंग कर सकते हैं।

 

  1. DOS Prompt

ऊपर बताये गये सभी steps पूरे होने के बाद, अंत में मॉनिटर स्क्रीन पर DOS Prompt दिखाई देता है जो यह प्रदर्शित करता है की बूटिंग प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है और कंप्यूटर, यूजर द्वारा उपयोग करने के लिए तैयार है।

डॉस प्रॉम्प्ट ही DOS का यूजर इंटरफेस होता है जिसके द्वारा यूजर कंप्यूटर से interact कर पता है अर्थात जिस पर यूजर कमांड टाइप करके कंप्यूटर से अपना कार्य करवाता है।

DOS Prompt एक CUI (Character User Interface) अर्थात CLI (Command Line Interface) प्रदान करता है मतलब इसमें यूजर केवल कैरेक्टर टाइप करके कंप्यूटर को command पास करता है।


 

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